ABOUT UMANG...

  • DISHA in non-profit trust with a mission to provide from the fundamental right of education
  • In 2013, we started Umang Pathshala, a school for the students belonging to a special community “Dakot” who survive their livelihood through begging in town on Saturday and Tuesday
  • Now, DISHA is taking an initiative & going to start a formal primary school “UMANG”– A Democratic School based on alternative education
  • Through this initiative, we are taking a step towards improving quality of education and giving a chance to those who are deprived yet

  • Monday 2 March 2015

    शिक्षा और समाज

    साथियों,
    आज हमारा समाज शिक्षा के मौजूदा हालात को लेकर गहरी चिंता में है। हम सभी समाज के बेहतर भविष्य के लिए शिक्षा के क्षेत्र में साकारात्मक बदलाव चाहते हैं। इसी समझदारी के साथ दिशा ट्रस्ट उमंग नाम से वैकल्पिक शिक्षा पर आधारित शिक्षण केंद्र की शुरुआत कर रहा है। इस सपने को साकार करने की मुहीम में हम सब को आमंत्रित करते हैं
    शिक्षा और समाज
    आज शिक्षा के बाजार में आर्थिक हैसियत के अनुसार ही शिक्षा, स्कूल व सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही है। यदि किसी के पास शिक्षा पर खर्च करने के लिए धन नहीं है तो उन बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए सरकारी स्कूलों का रुख करना पड़ता है यानि सरकारी स्कूल बेबस और निर्धन बच्चों के शिक्षा केंद्र बन कर रह गए है। जबकि सभी को बेहतर शिक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेवारी होनी चाहिए। वहीं दूसरी और अथाह धन लुटा कर प्राइवेट स्कूलों में कैसी शिक्षा दी जा रही है, उस से भी हम सब परिचित है। हम जो शिक्षा दे रहे हैं उसकी तस्वीर हमारे आज के हालात बखूबी ब्यां कर रहे हैं। जैसी हमारी शिक्षा व्यवस्था है वैसा ही समाज हमें देखने को मिल रहा है। आज अच्छी से अच्छी शिक्षा और नौकरी मिलने के बाद भी तनाव, सामाजिक रिश्तों में गैर-ईमानदारी या रिश्तों की सही समझ ना होना, पढ़े-लिखे युवाओं का छेडख़ानी व बलात्कार सहित बहुत से अपराधों में संलप्ति होना, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, लैंगिक भेदभाव, लड़ाई-झगड़े जैसे बहुत से मुद्दे ऐसे है, जिनमें पढ़े-लिखे लोग अक्सर शामिल रहते हैं। युवाओं में तेजी से नशा करने की संस्कृति हावी होती जा रही है, जिस से स्कूली विद्यार्थी भी अछूते नहीं है।कुल मिलाकर अगर हम ये कहें कि हमारी अंक आधारित किताबी शिक्षा पद्धति हमें इतना भी सिखा पाने में सफल नहीं हो पाई है कि एक सभ्य समाज में जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और लिंग के आधार पर बंटवारे की सोच की कोई जगह नहीं है। वर्तमान शिक्षा वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने की बजाए हमें डिग्री धारक शिक्षित हिंदू, मुस्लिम, सिख या इसाई तो बना रही है किंतु सब से प्यार करने वाला, महिलाओं की या अपने से भिन्न मत का सम्मान करने वाला अच्छा इंसान बना पाने में नाकाम साबित हो रही है। अगर हम चाहते है कि हमारी वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक दशा ठीक हो और हमारा समाज भविष्य की सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला करें और उन्हें सफलतापूर्वक हल भी करें तो हमारी शिक्षा व्यवस्था को सृजनात्मक शैक्षणिक माहौल एवं विद्यार्थियों का निमार्ण करने के लिए संकल्पित होना होगा।

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